09-01-1980     ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

"अलौकिक ड्रेस और अलौकिक श्रृंगार"

आज बाप-दादा विशेष चारों ओर के बच्चों की रमणीक रंगत देख रहे थे। जिसको देख मुस्करा भी रहे थे और कहीं-कहीं विशेष हँसी भी आ रही थी। वह कौन-सी रंगत थी? बाप-दादा देख रहे थे कि संगम युगी, सर्व श्रेष्ठ हीरे तुल्य युग के वासी और सर्व श्रेष्ठ बाप-दादा के बच्चे, ईश्वरीय सन्तान, ब्राह्मण कुल की श्रेष्ठ आत्माओं को व लाडले, सिकीलधे बच्चों को बाप-दादा ने विशेष सारे दिन के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की ड्रेस और श्रृंगार, साथ-साथ बैठने के स्थान व आसन कितने श्रेष्ठ दिये हैं। जो जैसा समय वैसी ड्रेस और वैसा ही श्रृंगार कर सकते हैं। सतयुग में भिन्न-भिन्न ड्रैसेज और श्रृंगार चेन्ज करेंगे लेकिन संस्कार तो यहाँ से ही भरने हैं ना। ब्रह्मा बाप ने संगमयुग की भिन्न-भिन्न ड्रैसेज और श्रृंगार से ब्राह्मण बच्चों को सजाया है। लेकिन रमणीक रंगत क्या देखी? जो इतनी सुन्दर ड्रैसेज और सजावट होते हुए भी कोई-कोई बच्चे पुरानी ड्रेस, मिट्टी वाली मैली ड्रेस पहन लेते हैं।

जैसी ड्रेस वैसा श्रृंगार

अमृतबेले की ड्रेस और श्रृंगार जानते हो? सारे दिन की भिन्न-भिन्न ड्रेस और श्रृंगार जानते हो? बाप-दादा द्वारा भिन्न-भिन्न टाइटल्स बच्चों को मिले हुए हैं। तो भिन्न-भिन्न टाइटल्स की स्थिति रूपी ड्रेस और भिन्न-भिन्न गुणों के श्रृंगार के सेट हैं। कितने प्रकार की ड्रैसेज और सेट हैं। जैसी ड्रेस वैसा श्रृंगार का सेट और ऐसे ही सजे-सजाये सीट पर सदा सेट रहो। अपनी ड्रैसेज गिनती करो कि कितनी हैं? उसी टाइटिल की स्थिति में स्थित होना अर्थात् ड्रैसेज को धारण करना। कभी विश्व-कल्याणकारी की ड्रेस पहनो, कभी मास्टर सर्व शक्तिवान की और कभी स्वदर्शन चक्रधारी की। जैसा समय जैसा कर्त्तव्य वैसी ड्रैसेज धारण करो। साथ-साथ भिन्न-भिन्न गुणों के श्रृंगार करो। यह भिन्न-भिन्न श्रृंगारों के सेट धारण करो। हाथों में, गले में, कानों में और मस्तक में यह श्रृंगार हो। मस्तक में यह स्मृति धारण करो कि `मैं आनन्द स्वरूप हूँ' - यह मस्तक की चिन्दी हो गई। मुख द्वारा अर्थात् गले में भी आनन्द दिलाने की बातें हों - यह गले की माला हो गई। हाथों द्वारा अर्थात् कर्म में आनन्द स्वरूप की स्थिति हो - ये हाथों के कंगन हो गए। कानों द्वारा भी आनन्द स्वरूप बनने की बातें सुनते रहना, यह कानों का श्रृंगार है। पाँव द्वारा आनन्द स्वरूप बनाने की सेवा की तरफ पाँव हों अर्थात् कदम-कदम आनन्द स्वरूप बनने और बनाने को ही उठे यह पाँव का श्रृंगार है। अब एक सेट समझ लिया? पूरा ही सेट धारण कर लिया? ऐसे अलग-अलग समय पर अलग-अलग सेट धारण करो। सेट धारण करना तो आता है ना? या कानों का पहनेंगे तो गले का छोड़ देंगे। वैसे भी आजकल की दुनिया में सेट पहनने का रिवाज है। तो आपके इतने श्रेष्ठ श्रृंगार के सेट हैं! वह धारण क्यों नहीं करते हो? पहनते क्यों नहीं हो। इतनी सब भिन्न-भिन्न प्रकार की सुन्दर ड्रैसेज छोड़कर देह अभिमान के स्मृति की मिट्टी वाली ड्रेस क्यों पहनते हो?

अनोखा डै्रस कॉम्पीटीशन

आज ड्रैस और श्रृंगार की कॉम्पीटीशन देखी कि कौन-से बच्चे सारा दिन सजे-सजाये रहते हैं और कौन-से बच्चे ड्रैस बदलने और पहनने उतारने में ही लग जाते हैं। अभी-अभी एक ड्रैस धारण करेंगे और अभी-अभी वह ड्रैस उतारकर घटिया ड्रैस पहन लेंगे, ज्यादा समय श्रेष्ठ सुन्दर ड्रैस पहन ही नहीं सकते। तो क्या देखा? कोई-कोई बिल्कुल बदबू वाली ड्रेस भी पहन लेते हैं। कौन-सी बदबू? देह के सम्बन्ध और देह के पदार्थो के लगाव की बदबू वाली ड्रैस जो दूर से ही बदबू आती थी। कोई गन्दे चमड़े की ड्रैस पहने हुए थे अर्थात् क्रिमिनल आई की, चमड़ी को देखने की, ऐसी गन्दी चमड़ी की ड्रैस भी पहने हुए थे। किसी की ड्रैस पर गन्दे दाग भी लगे हुए थे। गन्दे दाग अर्थात् औरों के अवगुण अर्थात् दाग को अपने में धारण करना। तो गन्दे-गन्दे दाग वाली ड्रैस भी थी। किसी की ड्रैस तो बहुत खराब खून के दागो की थी। वह क्यों थी? बारबार विकर्म करना अर्थात् आत्म-घात करना। आत्मा की श्रेष्ठ स्थिति का घात करना, ऐसी ड्रैस वाले भी थे। अब सोचो कहाँ सुन्दर टाइटल्स के स्थिति की ड्रैस और कहाँ ये गन्दी ड्रैस। श्रेष्ठ आत्माओं की ड्रैस भी श्रेष्ठ चाहिए। तो क्या देखा? कोई-कोई बच्चे सारा दिन उसी श्रेष्ठ ड्रैस में, श्रृंगार के सेट धारण करके सीट पर अच्छी तरह सेट थे और कोई बढ़िया ड्रैस धारण करते हुए भी, सामने होते हुए भी धारण करना चाहते हुए भी धारण कर नहीं सकते थे। तो अमृतवेले से श्रेष्ठ श्रृंगार का सेट धारण करो। जब श्रेष्ठ टाइटल्स की ड्रैस पहनेंगे, गुणों का श्रृंगार धारण करेंगे तो जैसे सतयुग में विश्व महाराजा व विश्व महारानी की राजाई ड्रैस के पीछे दास-दासियाँ ड्रैस को उठाते हैं, वैसे अब मायाजीत संगमयुगी स्वराज्य अधिकारीयों के टाइटल्स रूपी ड्रैस में स्थित होने के समय ये 5 तत्व, ये 5 विकार आपकी ड्रैस को पीछे उठायेंगे अर्थात् अधीन होकर चलेंगे।

तख्ते को छोड़ तख्त-नशीन हो जाओ

तो यह दृश्य अपना सामने लाओ कि कैसे मायाजीत के पीछे यह रावण के दस शीश, 10 सेवाधारी बन करके पीछे चलेंगे। लेकिन जब ड्रैस से टाइट होंगे और निरन्तर अर्थात् लम्बी-चौड़ी होगी तब वह 10 सर्वेन्ट आपके पीछे-पीछे उठाते आयेंगे। आजकल के राजे-रानियाँ भी यह चोगा बड़ा लम्बा-चौड़ा पहनते हैं जो उठा सवें। अगर निरन्तर की लम्बाई नहीं होगी, टाइटल्स में टाइट नहीं होंगे तो यही सेवाधारी ड्रैस उतार देंगे क्योंकि लूज़ होगी ना। तो अब दृढ़ संकल्प से टाइटल्स की ड्रैस को टाइट करो। दृढ़ संकल्प है बेल्ट। इससे टाइट करो तो सदा सेफ रहेंगे और सदा सेवाधारी अधीन रहेंगे। सुनाया था ना कि विकार परिवर्तन हो सहयोगी, सेवाधारी हो जायेंगे। अभी ड्रैस पहनना आ गया। टाइट करना भी आ गया। जिस समय जो ड्रैस चाहो वह पहनो। लेकिन गन्दी ड्रैस नहीं पहनना। वैराइटी ड्रैस और वैराइटी श्रृंगार का लाभ उठाओ। ब्रह्मा बाप व बापदादा ने संगम का दहेज दिया है, लव मैरेज की है तो दहेज भी मिलेगा ना। तो दहेज है यह वैराइटी श्रृंगार के सेट और सुन्दर ड्रैस। बाप-दादा का दहेज छोड़ के पुराना दहेज यूज़ नहीं करो। कई बच्चे ऐसे करते हैं जो बाप-दादा का दहेज भी जरूर लेंगे व लिया भी है लेकिन साथ में पुरानी ड्रैस भी छिपाकर रखी है। इसलिए कभी उसे भी धारण कर लेते हैं। जब पुराना लगाव लग जाता है तो पुरानी ड्रैस पहन लेते हैं। अमूल्य ड्रैस को छोड़ फटी-टूटी ड्रैस पहन लेते हैं तो ऐसे मत करना। अब तक भी छिपाकर रखा हो तो जला देना है। और जलाकर के राख भी अपने पास नहीं रखना। वह भी सागर में स्वाहा कर देना तो सदा सजे रहेंगे और बाप के साथ दिलतख्तनशीन रहेंगे। तख्त से उतरेंगे तो फाँसी तख्ता आ जायेगा। कभी लोभ का कभी मोह का। तो फाँसी के तख्ते को छोड़ तख्तनशीन हो जाओ। दहेज सम्भाला हुआ है ना। यूज़ करो। दहेज सिर्फ रख न दो। सिर्फ देखते रहो बहुत अच्छा है, बहुत अच्छा है। लेकिन धारण करो। और ड्रेस कॉम्पीटीशन में फर्स्ट नम्बर आ जाओ। सुनाया ना नम्बर है निरन्तर के ऊपर। ड्रेस पहननी तो सभी को आती है, लेकिन ड्रेस सदा टिप-टॉप रहे यह नहीं आता है। तो सदा सजे-सजायें का नम्बर है। कॉम्पीटीशन में फॉरेन वाले नम्बर वन लेंगे या भारत वाले लेंगे। जितना चाहें उतना ले सकते हैं। वहाँ तो प्राइज़ के कारण एक को ही फर्स्ट नम्बर मिलता। यहाँ तो बहुतों को फर्स्ट नम्बर बना सकते हैं, यहाँ अखुट खज़ाना है इसलिए जितने भी फर्स्ट आयेंगे उनको फर्स्ट प्राइज़ मिल जायेगी। अच्छा, कल से क्या करेंगे?

अमृतबेले से लेकर भिन्न-भिन्न ड्रेस और श्रृंगार के सेट से सज-धज कर सारा दिन बाप के साथ रहना। अमृतबेले से ही फर्स्ट नम्बर की ड्रेस पहनना। ऐसी सजी हुई सजनियों को ही साथ ले जायेंगे। औरों को नहीं। जो कॉम्पीटीशन में फर्स्ट नम्बर आयेंगे वे ही साथ रहेंगे और साथ चलेंगे। जो रहेंगे नहीं वह चलेंगे भी नहीं। तो सदा यह स्लोगन याद रखो अर्थात् यह तिलक लगाना - ``साथ रहेंगे साथ चलेंगे''। समझते हो ना कॉम्पीटीशन में कितना अच्छा लगता होगा। बाप, ब्रह्मा बाप को वतन में यह दिखाते रहते हैं। बच्चों की याद तो ब्रह्मा बाप को भी रहती है। तो बच्चों का हाल-चाल दिखाते रहते हैं।

ऐसी सदा सजी-सजाई मूर्त, संगमयुगी श्रेष्ठ जीवन के महत्व को जानने वाली महान आत्मायें, दुश्मन को भी सेवाधारी बनाने वाले, सहयोगी बनाने वाले, ऐसे मास्टर सर्वशक्तिवान, सदा बाप और आप, इस विचित्र युगल रूप में रहने वाले, ऐसी परम पूज्य और गायन योग्य आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

“शिव जयन्ती महोत्सव धूम-धाम से मनाने के लिए अव्यक्त बाप-दादा का विशेष प्लैन”

अभी सेवा के अच्छे चान्स आ रहे हैं। साकार और निराकार दोनों को प्रत्यक्ष करने का समय सपीप आ रहा है। इसमें क्या नवीनता करेंगे? हर फंक्शन में कोई-न-कोई नवीनता तो करते हो ना। तो इस शिवरात्रि पर विशेष क्या करेंगे?

 

1. जैसे पिछली बारी लाइट एण्ड साउण्ड का संकल्प रखा तो हरेक ने अपने-अपने स्थान पर यथाशक्ति किया। शिवरात्रि पर जैसे गीता के भगवान को सिद्ध करने का लक्ष्य रखते हो ना, लेकिन कटाक्ष करते हो तो लोगों को समझ में नहीं आता है। इसके लिए इस बार शिवरात्रि के दिन दो चित्रों को विशेष सजाओ - एक निराकार शिव का, दूसरा श्रीकृष्ण का। विशेष दोनों चित्रों को ऐसे सजाकर रखो जैसे किरणों का चित्र बनाते हो ना। शिव का भी किरणों वाला चित्र सजाया हुआ हो और श्रीकृष्ण का भी किरणों का चित्र सजाया हुआ हो। विशेष दोनों चित्रों की आकर्षण हो। कृष्ण के चित्र की महिमा अलग और शिव की महिमा अलग। कटाक्ष नहीं करो लेकिन दोनों के अन्तर को सिद्ध करो। स्टेज का विशेष शो यह दो चित्र हों। जैसे कोई भी कोन्फेरेंस आदि करते हो तो कोन्फेरेंस का सिम्बल सजाकर रखते हो, फिर उसका अनावरण कराते हो। ऐसे शिवरात्री पर कोई भी वी.आई.पी. द्वारा इन दोनों चित्रों का अनावरण कराओ और उन्हें थोड़े में पहले उसका अन्तर स्पष्ट कर सुनाओ। फिर सभा में भी इसी टॉपिक पर जिस समय शिव की महिमा करो तो भाषण के साथ-साथ चित्र भी रखो। भाषण करने वाले साथ-साथ चित्र दिखाते जाएँ। यह ये हैं - यह ये हैं। तो सभी का अटेन्शन जायेगा। पहले अन्तर सुनाकर फिर उनको कहो अब आप जज करो कि रचयिता कौन और रचता कौन? तो गीता का ज्ञान रचयिता ने दिया या रचना ने? तो इस शिवरात्रि पर इन दो विशेष चित्रों का महत्व रखो।

2. जैसे पिछली बारी लाइट एण्ड साउण्ड की टेप में कॉमेन्ट्री भरी हुई थी वैसे नहीं लेकिन प्रोग्राम के बीच में शिवबाबा का सजा हुआ लाइट का चित्र सामने लाओ और सामने रखते हुए सब लाइट बन्द कर दो, उस चित्र की लाइट ही हो फिर धीरे-धीरे डायरेक्ट उस समय बाप की महिमा करते जाओ। महिमा करते उनको भी महिमा में लेते चलो। महिमा सुनाते हुए अनुभव कराओ। शान्ति का सागर कहो तो शान्ति की लहर फैल जाए। जो भी गुण वर्णन करो उसकी लहर फैल जाए। उस समय सब लाइट बन्द होनी चाहिए। सिर्फ एक उस चित्र की तरफ सबका अटेन्शन हो। धीरे-धीरे ऐसे अनुभवी मूर्त होकर महिमा करो। जैसे साथ में लिए जा रहे हैं। शान्ति का सागर कहा तो जैसे उसी सागर में सब नहा रहे हैं, ऐसा अनुभव कराओ। जैसे योग की कॉमेन्ट्री करते हो धीरे-धीरे वैसे उनको लक्ष्य देकर उसी रीति से बिठाओ तो एक अटेन्शन जायेगा और दूसरा अन्तर का मालूम पड़ जायेगा। कट करने की जरूरत नहीं होगी। स्वत: ही सिद्ध हो जायेगा।

3. हर फंक्शन में योग शिविर के प्रोग्राम का एनाउन्स जरूर करो। चाहे एक दिन का फंक्शन करते हो लेकिन योग शिविर के फार्म जरूर भराओ। योग शिविर के फार्म का विशेष टेबल बना हुआ हो उसमें नज़दीक स्थान के लिए फार्म भराओ। तो जो पीछे योग शिविर करने आयेंगे वह सम्पर्क में आ जायेंगे। योग शिविर के फार्म भराकर पीछे भी उनका सम्पर्क बनाते रहो। कोई भी प्रोग्राम करो उसमें योग शिविर को विशेष महत्व दो।

4. जो भी चान्स मिलते हैं और जो भी सम्पर्क में आये हैं, या कोई विघ्नों के कारण भागन्ती हो चले गये हैं, उनको ऐसे मौके पर विशेष निमन्त्रण दो। जो अपनी कमज़ोरियों के कारण पीछे रह गये हैं उनको स्नेह से आगे बढ़ाना चाहिए। ऐसे प्रोग्राम से उनमें भी जागृति आयेगी। उमंग में आ जायेंगे।

सर्विसएबुल बच्चों के प्रति बाप-दादा के मधुर महावाक्य –

सर्विसएबुल बच्चों की महिमा तो बहुत महान है। क्योंकि बाप समान हैं ना। बाप भी बच्चों की सर्विस करने आते हैं और आप भी निमित्त हो तो समानता हो गई ना। समान वाले की महिमा होती है। समान वाला ही सदा साथ रह सकता है। समान नहीं होगा तो साथ भी नहीं होगा। `बाप समान अर्थात् सदा स्वमान में रहने वाले'। जैसे बाप अपने स्वमान को कभी भूलता है क्या? तो बाप समान अर्थात् सदा स्वमान में रहने वाले। ऐसे हो? सदा बाप और सेवा - यह दोनों ही ऐसे स्मृति में रहते हैं जैसे शरीर की स्मृति स्वत: ही रहती है। याद करना नहीं पड़ता लेकिन स्वत: याद रहती है। ऐसे बाप की याद और सेवा भी स्वत: याद रहे। अगर आप भी मेहनत करके याद में रहो तो औरों को सहजयोगी कैसे बनायेंगे। सर्विसएबुल बच्चों की क्वालिफिकेशन है ही - `सहजयोगी', स्वतः योगी।

बेबी नहीं, बीबी

अभी समय के प्रमाण मेहनत समाप्त होनी चाहिए। अगर अभी भी मेहनत का अनुभव हो या क्यों, क्या का क्वेश्चन हो तो अपनी ड्यूटी को बजा नहीं सकते हो। क्यों, क्या करना अर्थात् क्यू में खड़ा होना। अगर स्वयं ही क्यू में होंगे तो औरों को तृप्त आत्मा कैसे बना सकेंगे। खुद ही लेने वाले होंगे तो दाता कैसे बनेंगे? सेवाधारी अर्थात् देते जाओ और साथ में लेते जाओ। जो स्वयं ही क्यों, क्या वाले हैं वह तो भिखारी के मुआफिक माँगने वाले होंगे। शक्ति देना, सहयोग देना, मैं यह कार्य कर रही हूँ, आप सफलता देना, यह अर्जा भी रॉयल भिखारीपन है। जो स्वयं भिखारियों की क्यू में होंगे वह औरों को दाता बनकर कैसे दे सकेंगे! अब बचपन खत्म हुआ। बचपन में सब छूट थी, रोना भी छूट, फीलिंग भी छूट, संकल्पों की भी छूट मिल गई, लेकिन अभी नहीं। अभी तो वानप्रस्थ तक पहुँच गये हो ना। बचपन की बातें वानप्रस्थ में नहीं रहती। इसमें क्यों, क्या नहीं। क्यों, क्या करने वाले अर्थात् बेबी क्वालिटी। जो बेबी होंगे वह बीबी नहीं बनेंगे। अब तो मियाँ और बीबी का सौदा है। अभी बेबीपन खत्म हुआ। बाप-समान बन गये तो बीबी और मियाँ बन गये। छोटे बच्चे को समान नहीं कहेंगे। जब बच्चा बड़ा बन जाता है या बाप बन जाता है तब समान कहा जाता है। तो अभी बेबी क्वालिटी खत्म।

सब-कुछ अपना है या कुछ अपना नहीं

संस्कार मिलते नहीं, यह भी संकल्प न आये। मिलाने ही हैं। मिलते नहीं, यह कौन बोलता है? यह बदलता नहीं, सुनता नहीं, यह ना-ना या नहीं-नहीं की भाषा किसकी है? अब तो होना ही है। हाँ जी। `ना' शब्द समाप्त। तो सभी हाँहाँ वाले हो ना। अभी बेहद के बनो, हद को छोड़ो। सुनाया था ना, कोई जोन का भी हेड है तो यह भी हद हुई। नक्शे के अन्दर देखो आपका जोन क्या है? बिन्दी। तो हद हो गई ना। अभी फलाने स्थान के हैं, यह भी नहीं। फलाने स्थान पर ही ठीक हैं, यह भी नहीं। बेहद के मालिक बनना है या एक स्थान का? ऐसा नहीं, थोड़ा-सा स्थान परिवर्तन हो तो स्थिति परिवर्तन हो जाए। अभी भेजेंगे यहाँ वहाँ, तैयार हो? फॉरेन भेजें या किसी भी स्थान पर भेजें लेकिन एवररेडी। देश में भेजें या विदेश में। जब जाना होता है तो शक्ति आपे ही मिल जाती है। तो कल से सभी को चेन्ज करें? अच्छा - नई बुलेटिन निकालें फिर नहीं कहना अभी तैयार होने के लिए एक साल और दो, सिर्फ 4 मास दो, दो मास दो, ऐसे तो नहीं कहेंगे ना । हिम्मत है? अपना है ही क्या। अगर अपना है तो सब, अपना है, नहीं तो कुछ अपना नहीं। जो बाप का वह अपना। बाप का बेहद है आपका भी बेहद। सब हमारे हैं, इसको कहते हैं बेहद। सभी बच्चों को सदा विशेष सहयोग देते ही रहते हैं क्योंकि जो सेवा में निमित्त बने हुए हैं तो विशेष सेवाधारियों को विशेष सहयोग सदा प्राप्त होता ही है। विशेष कार्य वाले तो पहले याद आयेंगे ना। लौकिक रीति से भी कोई हिस्ट्री को याद करो तो हिस्ट्री में भी कौन पहले आता है? जो विशेष होगा वही याद आयेगा ना। संगमयुग की हिस्ट्री में भी जो जितना विशेष सेवाधारी हैं वह विशेष आत्मा है। तो बाप-दादा जब भी याद करेंगे तो पहले-पहले वह स्वत: ही याद आयेंगे। याद करो, यह कहने की जरूरत ही नहीं। सिर्फ विशेष याद का रिटर्न लेने वाले बनो। बाप सबको याद का रिटर्न देते हैं लेकिन लेने वाले कभी-कभी अलबेलेपन के कारण लेते नहीं है। बाप के पास जो भी है, वह देने के लिए हैं, तो बाप सबको देते हैं, लेने वाले नम्बरवार हैं।